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पंचकूला में बड़े स्तर पर चल रहा कूड़ा उठाने वालों का गोरख धंधा

पंचकूला। शहर पंचकूला के सेक्टरों में घरों से कूड़ा उठाने वाली रेहडय़ां सेक्टरों की तादाद में चल रही हैं। आपने कभी सोचवा है कि ये रेहडिय़ों वाले कौन हैं और मोहल्लों में से अपने आप कैसे ठेकेदार बन गए हैं। न तो इनको प्रशासन ने कोई लाइसेंस दिया हुआ है तथा न ही किसी प्राइवेट आदमी ने उसकी जिम्मेवारी ली हुई है। कभी इनके बारे में न तो किसी ने सवाल किया है। पंचकूला समाचार की टीम ने जब इन रेहड़ी वाले लड़कों से पूछा तो उन्होंने बताया कि हम लोग तो अपने स्तर पर कोठियों से कूड़ा उठाते हैं। जब इनसे पूछा गया कि आप हर रोज कितनी कोठियों से कूड़ा इकट्ठा करते हो तो इनका कहना था कि करीब 300 घरों से सुबह से शाम तक कूड़ा उठाते हैं। जब इनसे सवाल किया गया कि दो तीन महीने बाद तुम्हारा आदमी चेंज हो जाता है तो इस पर उनका कहना था कि पहली रेहड़ी वाला दूसरे को खुद ही कूड़ा उठाने का काम बेच जाता है। जब इनसे पूछा कि कितने पैसे रेहड़ी वाले को दिए तो इस कूड़ा उठाने वाले का कहना था कि इस कूड़े को उठाने का ठेका उसने 70 हजार रुपए में लिया है। अब वह घरों से कूड़ा इकट्ठा करेगा। शहर में इतना बड़ा धंधा चल रहा है मगर यह सब शहर वासियों को पता ही नहीं कि हर माह या हर साल ये रेहड़ी वाले कैसे बदल जाते हैं।

जब इनसे पूछा गया कि आप लोग घरों से पैसा कैसे फिक्स करते हैं? तो इनका कहना था कि किसी इसका हम 50 से 100 रुपए तक प्रति घर के हिसाब से लेते हैं मगर फिक्स वाली बात पर कन्नी काट गए। जब इनसे पूछा गया कि कई बार तुम लोग तीन-तीन, चार-चार दिन तक नहीं आते उस स्थिति में क्या होता है? तो उनका कहना था कि उस बीच कोई दूसरा आदमी नहीं आता हां छूटा हुआ कूड़ा हम उठाते जरूर हैं। कुल मिलाकर इनके पीछे कोई न कोई ठेकेदारी तो कर रहा है जो सामने आने से बच रहा है। यह गोरखधंधा बड़े स्तर पर चल रहा है। इससे जनता को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। कई बार तीन-चार दिन आते ही नहीं पूछने पर कहते हैं कि लड़का छुट्टी पर चला गया था। कई जागरुक लोगों ने प्रशासन से शिकायत की है कि ये लोग अपनी मनमर्जी कर रहे हैं और अक्सर अभद्रता पर उतर आते हैं। अगर इनसे पूछा जाता है कि तुम एक दो दिन क्यों नहीं आए तो ये कहते हैं कि किसी दूसरे को लगा लो। मगर सच्चाई यह है कि इन्होंने खुद ही एरिया बांटे होते हैं तथा ये दूसरे कूड़ा उठाने वाले को मोहल्ले में घुसने नहीं देते तथा अपनी मोनोपॉली करते हैं। हकीकत यह है कि इन लोगों ने खुद ही अपनी दुकानदारी चलाई हुई है।

कई कोठियों वालों का कहना है कि प्रशासन इन रेहडिय़ों को अपने अंडर ले और इनको लाइसेंस इश्यू करे ताकि लोगों को पता हो तक यह प्रशासन की तरफ से है या फिर प्रशासन रेज़ीडेंट्स वेलफेयर सोसाइटी को इनका जिम्मा सौंपे। इनकी प्रशासन के प्रति जवाबदेही भी होनी चाहिए। इन कूड़ा एकत्र करने वालों को प्रशासन की तरफ से लाइसेंस इश्यू किए जाने चाहिए और रेज़ीडेंट वेलफेयर सोसाइटी की भी ड्यूटी लगाई जाए इसका फायदा यह होगा कि ये कूड़ा उठाने वाले एक तो मनमर्जी नहीं कर सकेंगे दूसरे प्रशासन को राजस्व भी आएगा तीसरे ये लोगों के साथ बदतमीजी भी नहीं कर सकेंगे। अब से करीब 10 साल पहले भी इन कूड़ा करकट उठाने वाले लोगों पर रेज़ीडेंट वेलफेयर सोसाइटियों का नियंत्रण होता था एवं इनके कार्ड भी बनाए गए थे। उधर सेक्टर 12-ए के आरके जिंदल, सेक्टर-15 के साजन गोयल, सेक्टर-7 के संजीव कपूर, सेक्टर-9 के दुर्गेश कुमार, सेक्टर-15 के उमेश कुमार की मांग है कि प्रशासन इस पर शीघ्र संज्ञान ले ताकि ये लोग सुचारु रूप से काम करें।