चंडीगढ़ के रहने वाले जगदीश लाल आहूजा को पद्मश्री अवॉर्ड ने नवाजा गया है। जगदीश लाल आहूजा दो दशकों से भूखे को खाना खिला रहे हैं। जिसके चलते इन्हें ‘लंगर बाबा’ के नाम से ही जाना जाने लगा। जनवरी सन् 2000 में PGI के बाहर शुरू किया गया था जब आहूजा खुद कैंसर के इलाज के लिए अस्पताल में भर्ती थे।
21 जनवरी 2000 को, उन्होंने PGI के बाहर एक लंगर का आयोजन किया। हालांकि पहले दिन पर प्रतिक्रिया कम रहीं थी, लेकिन पांचवें दिन तक लोग आने लगे, लंगर बाबा बताते है कि ‘कई वर्षों तक, हम लगभग 2000 लोगों को प्रतिदिन दाल, रोटी, चवाल और हलवा परोसते रहे।’
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लोगों की सेवा के लिए आहूजा ने अपने खेत, शोरूम और आवासीय भूखंडों सहित कई संपत्तियां बेच दी और सच्चे मन से लोगों की सेवा में लगे रहे। अभी तक भी हर रात 500 से 600 व्यक्तियों का लंगर तैयार होता है। लंगर के दौरान आने वाले बच्चों को बिस्कुट और खिलौने भी बांटे जाते हैं। मजबूरों का पेट भरते हैं। आज, विभिन्न संगठन अस्पतालों के बाहर लंगरों का आयोजन करते हैं।
‘लंगर बाबा’ जगदीश आहूजा का प्रेरणादायक जीवन
आहूजा भारत-पाकिसतान के बंटवारे के महज 12 साल की उम्र में पंजाब के मानसा शहर आए थे। जिंदा रहने के लिए रेलवे स्टेशन पर उन्हें नमकीन दाल बेचनी पड़ी, ताकि उन पैसों से खाना खाया जा सके और गुजारा हो सके। कुछ समय बाद वह पटियाला चले गए और गुड़ और फल बेचकर जिंदगी चलाने लगे और फिर 1950 के बाद करीब 21 साल की उम्र में आहूजा चंडीगढ़ आ गए। उस समय चंडीगढ़ को देश का पहला योजनाबद्ध शहर बनाया जा रहा था। यहां आकर उन्होंने एक फल की रेहड़ी किराये पर लेकर केले बेचना शुरू कर दिया।
उस समय को याद करते हुए वह कहते हैं, ‘मुझे याद है कि इस शहर में मैं खाली हाथ आया था, शायद 4 रुपए 15 पैसे थे मेरे पास। यहां आकर मुझे धीरे-धीरे पता लगा कि यहां मंडी में किसी ठेले वाले को केला पकाना नहीं आता है। पटियाला में फल बेचने के कारण मैं इस काम में माहिर हो चुका था। बस फिर मैंने काम शुरू किया और मेरी किस्मत चमक उठी और मैं अच्छे पैसे कमाने लगा।’
जन्मदिन पर लंगर लगाने का क्रम शुरू किया था, जब सेक्टर-26 मंडी में लंगर लगाया। लंगर में सैकड़ों लोगों की भीड़ जुटी। खाना कम पड़ने पर पास बने ढाबे से रोटियां मंगवाई गई। उसके बाद से मंडी में लंगर लगने लगा।
2000 में पीजीआईएमएस के बाहर शिफ्ट हुआ लंगर
जनवरी 2000 में जब वह खुद बीमार हो पीजीआईएमएस में एडमिट थे तो जिंदगी बड़ी मुश्किल से बच पाई थी। पेट के कैंसर से पीड़ित जगदीश लाल आहूजा ज्यादा दूर चल नहीं पाते, लेकिन इसके बावजूद लोगों की मदद करने में उनके जज्बे का कोई मुकाबला नहीं है।