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महाशिवरात्रि पर भक्त पहुंचे शिव मंदिरों में दर्शन करने

चण्डीगढ़। महाशिवरात्रि पर शिव के भक्त सुबह से ही शिव पूजन करने के लिए मंदिरों में पहुंच गए। शहर के लगभग सभी मंदिरों में शिव भक्तों की लम्बी लाईन देखने को मिली। शिव भगवान के प्रति श्रद्धा रखने वाले श्रद्धालुओं ने लम्बी कतार में लगकर शिव मंदिर में माथा टेका। साथ ही बेल-पत्र, भांग व फल फूल के साथ विधिवत तरीके से शिव की पूजा की।

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आज शहर में जगह-जगह शिव भगवान के भक्तों ने दूध व लंगर की व्यवस्था कर। मंदिर में आये तथा रास्ते से गुजरने वाले लोगों को प्रसाद ग्रहण करवाया। इसके अलावा प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय लाइट हाउस, पंचराम कॉलोनी रायपुररानी में त्रिमूर्ति शिव जयंती के उपलक्ष्य में परमपिता परमात्मा का संदेश देने के लिए एक शोभायात्रा का आयोजन किया गया। शोभायात्रा पंचराम कॉलोनी स्थित लाइट हाउस से शुरू हुई जो मेन रोड, बस स्टैंड, एसडी स्कूल, मेन बाजार से नारायणपुर रोड से होते हुए वापस लाइट हाउस पहुंची।

क्यों मनाई जाती है महाशिवरात्रि? 

  1. आखिर महाशिवरात्रि क्यों मनाई जाती? दरअसल, महाशिवरात्रि मनाए जाने को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं ।एक पौराणिक मान्यता के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही शिव जी पहली बार प्रकट हुए थे। मान्यता है कि शिव जी अग्नि ज्योर्तिलिंग के रूप में प्रकट हुए थे। जिसका न आदि था और न ही अंत कहते हैं कि इस शिवलिंग के बारे में जानने के लिए सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा ने हंस का रूप धारण किया और उसके ऊपरी भाग तक जाने की कोशिश करने लगे, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली वहीं, सृष्टि के पालनहार विष्णु ने भी वराह रूप धारण कर उस शिवलिंग का आधार ढूंढना शुरू किया लेकिन वो भी असफल रहे।
  2. एक अन्य पौराणिक मान्यता के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन ही विभन्नि 64 जगहों पर शिवलिंग उत्पन्न हुए थे । हालांकि 64 में से केवल 12 ज्योर्तिलिंगों के बारे में जानकारी उपलब्ध है। इन्हें 12 ज्योर्तिलिंग के नाम से जाना जाता है।
  3. तीसरी मान्यता के अनुसार महाशिवरात्रि की रात को ही भगवान शिव शंकर और माता शक्ति का विवाह संपन्न हुआ था।

क्या है शिवरात्रि और महाशिवरात्रि?

यूं तो शिव की उपासना के लिए सप्ताह के सभी दिन अच्छे हैं, फिर भी सोमवार को शिव का प्रतीकात्मक दिन कहा गया है। इस दिन शिव की विशेष पूजा-अर्चना करने का विधान है। सोमवार चंद्र से जुड़ा हुआ दिन है। शैव पंथ में चंद्र के आधार पर ही सभी व्रत और त्योहार आते हैं।
हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि कहते हैं। लेकिन फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी पर पड़ने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है, जिसे बड़े ही हषोर्ल्लास और भक्ति के साथ मनाया जाता है।

शिवरात्रि बोधोत्सव है। ऐसा महोत्सव, जिसमें अपना बोध होता है कि हम भी शिव का अंश हैं, उनके संरक्षण में हैं। माना जाता है कि सृष्टि की शुरुआत में इसी दिन आधी रात में भगवान शिव का निराकार से साकार रूप में (ब्रह्म से रुद्र के रूप में) अवतरण हुआ था। ईशान संहिता में बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात आदि देव भगवान श्रीशिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभा वाले लिंगरूप में प्रकट हुए।

ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि में चंदमा सूर्य के नजदीक होता है। उसी समय जीवनरूपी चंद्रमा का शिवरूपी सूर्य के साथ योग-मिलन होता है। इसलिए इस चतुर्दशी को शिवपूजा करने का विधान है।

प्रलय की बेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से भस्म कर देते हैं। इसलिए इसे महाशिवरात्रि या जलरात्रि भी कहा गया है। इस दिन भगवान शंकर की शादी भी हुई थी। इसलिए रात में शंकर की बारात निकाली जाती है। रात में पूजा कर फलाहार किया जाता है। अगले दिन सवेरे जौ, तिल, खीर और बेल पत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है।

क्या कीजियेगा आज महापर्व महाशिवरात्रि पर भोले की सेवा मे जाने साथ ही।चार प्रहर की पूजा क्यु है जरूरी कैसे करे,,, महाशिवरात्रि :प्रहर पूजा ——-

शिव सामान्य फूल से भी प्रसन्न हो जाते हैं। बस भाव होना चाहिए। इस व्रत को जनसाधारण स्त्री-पुरुष , बच्चा, युवा और वृद्ध सभी करते है। धनवान हो या निर्धन, श्रद्धालु अपने सामर्थ्य के अनुसार इस दिन रुद्राभिषेक, यज्ञ और पूजन करते हैं। भाव से भगवान आशुतोष को प्रसन्न करने का हर संभव प्रयास करते हैं।
महाशिवरात्रि का ये महाव्रत हमें प्रदोष निशीथ काल में ही करना चाहिए। जो व्यक्ति इस व्रत को पूर्ण विधि-विधान से करने में असमर्थ हो, उन्हें रात्रि के प्रारम्भ में तथा अर्धरात्रि में भगवान शिव का पूजन अवश्य करना चाहिए।

शिवपुराण के अनुसार व्रत करने वाले को महाशिवरात्रि के दिन प्रात:काल उठकर स्नान व नित्यकर्म से निवृत्त होकर ललाट पर भस्मका त्रिपुण्ड तिलक और गले में रुद्राक्ष की माला धारण कर शिवालय में जाना चाहिए और शिवलिंग का विधिपूर्वक पूजन एवं भगवान शिव को प्रणाम करना चाहिए। तत्पश्चात उसे श्रद्धापूर्वक महाशिवरात्रि व्रत का संकल्प करना चाहिए।
महाशिवरात्रि के प्रथम प्रहर में संकल्प करके दूध से स्नान व ॐ ओम हीं ईशानाय नम: का जाप करना चाहिए।

द्वितीय प्रहर में दधि स्नान करके ॐ ओम हीं अधोराय नम: का जाप व
तृतीय प्रहर में घृत स्नान एवं मंत्र ॐ ओम हीं वामदेवाय नम: तथा
चतुर्थ प्रहर में मधु स्नान एवं ॐ ओम हीं सद्योजाताय नम: मंत्र का जाप करना चाहिए।

चार प्रहर पूजा मुहूर्त—–

महाशिवरात्रि पर शिव-पार्वती की पूजा 4 प्रहरों में बांटी गई है. देखें शुभ समय:
पहले प्रहर की पूजा: 21 फरवरी को शाम 06:26 से रात 09:33 तक
दूसरे प्रहर की पूजा: 21 फरवरी को रात 09:33 से रात 12:40 तक
तीसरे प्रहर की पूजा: 21 फरवरी को रात 12:40 से 22 फरवरी सुबह 03:48 तक
चौथे प्रहर की पूजा: 22 फरवरी को सुबह 03:48 से सुबह 06:55 तक

बेहद शुभ मुहूर्त

महाशिवरात्रि पर पूजा का बेहद शुभ मुहूर्त काल 50 मिनट का रहेगा. ये समय होगा 22 फरवरी को मध्‍य रात्र‍ि 12:15 बजे से 01:05 बजे तक. ये 50 मिनट बेहद शुभ हैं।
महाशिवरात्रि का पावन पर्व

देवों के देव भगवान् भोलेनाथ के भक्तों के लियें महाशिवरात्रि का व्रत विशेष महत्व रखता हैं। यह ध्यात्मिक महापर्व तीनों लोकों के मालिक भगवान् शिवजी का सबसे बड़ा त्योहार है, कहते हैं महाशिवरात्रि ऐसा दिन होता है जब भगवान् शंकरजी स्वयं माता पार्वतीजी के साथ पृथ्वी पर होते हैं, जहाँ उनके जितने शिवलिंग हैं।

देवों के देव भगवान् भोलेनाथ के भक्तों के लिये महाशिवरात्रि का व्रत विशेष महत्व रखता हैं, ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान शंकरजी एवम् माँ पार्वतीजी का विवाह सम्पन्न हुआ था, और इसी दिन प्रथम शिवलिंग का प्राकट्य हुआ था, इसके अलावा ये भी मान्यता है की महाशिवरात्रि के दिन भगवान् शिवजी ने कालकूट नामक विष को अपने कंठ में रख लिया था, जो समुद्र मंथन के समय बाहर से निकला था।

इस महाशिवरात्रि के व्रत रखने से भगवान भोले नाथ शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं, उपवासक की मनोकामना पूरी करते हैं, इस व्रत को सभी स्त्री-पुरुष, बच्चे, युवा, वृ्द्धों के द्वारा किया जा सकता हैं, महाव्रत को विधिपूर्वक रखने पर और शिवपूजन, शिव कथा, शिव स्तोत्रों का पाठ व “उँ नम: शिवाय” का पाठ करते हुए रात्रि जागरण करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल प्राप्त होता हैं।

व्रत के दूसरे दिन यानी चतुर्दशी को यथाशक्ति वस्त्र-क्षीर सहित भोजन, दक्षिणादि प्रदान करके भगवान् शिवजी को संतुष्ट किया जाता हैं, इस व्रत के विषय में यह मान्यता है कि इस व्रत को जो शिव-भक्त करता है, उसे सभी भोगों की प्राप्ति के बाद, मोक्ष की प्राप्ति होती है, यह व्रत सभी पापों का क्षय करने वाला है, एवम् इस व्रत को लगातार चौदह वर्षो तक करने के बाद विधि-विधान के अनुसार इसका उद्धापन करना शुभ माना गया है।

पहला व्रत करते समय इस व्रत का संकल्प करना चाहियें, सम्वत, नाम, मास, पक्ष, तिथि-नक्षत्र, अपने नाम व गोत्रादि का उच्चारण करते हुए संकल्प के साथ महाशिवरात्रि का व्रत करना चाहिये, महाशिवरात्री के व्रत का संकल्प करने के लिये हाथ में जल, चावल, पुष्प आदि सामग्री लेकर शिवलिंग पर छोड दी जाती है।

उपवास की पूजन सामग्री में पंचामृ्त (गंगाजल, दुध, दही, घी, शहद), सुगंधित फूल, शुद्ध वस्त्र, बिल्व पत्र, धूप, दीप, नैवेध, चंदन का लेप, ऋतुफल तथा नारियल का उपयोग करना चाहिये, महाशिवरात्री व्रत को रखने वालों को उपवास के पूरे दिन, भगवान भोले नाथ का ध्यान करना चाहियें, प्रात: स्नान करने के बाद भस्म का तिलक कर रुद्राक्ष की माला धारण की जाती है।

ईशान कोण दिशा की ओर मुख कर शिवजी का पूजन धूप, पुष्पादि व अन्य पूजन सामग्री से पूजन करना चाहियें, इस व्रत के रात्रि में चारों पहर में पूजन किया जाता है. प्रत्येक पहर की पूजा में “उँ नम: शिवाय” व ” शिवाय नम:” का जाप करते रहना चाहियें, अगर शिव मंदिर में यह जाप करना संभव न हों, तो घर की पूर्व दिशा में, किसी शान्त स्थान पर बैठकर इस मंत्र का जाप किया जा सकता हैं।

चारों पहर में किये जाने वाले इन मंत्र जापों से विशेष पुन्य प्राप्त होता है, इसके अतिरिक्त उपावस की अवधि में रुद्राभिषेक करने से भगवान शंकर अत्यन्त प्रसन्न होते है, महाशिव रात्रि के दिन शिव अभिषेक करने के लिये सबसे पहले एक मिट्टी का बर्तन लेकर उसमें पानी भरकर, पानी में बेलपत्र, आक धतूरे के पुष्प, चावल डालकर शिवलिंग को अर्पित किये जाते है।

व्रत के दिन शिवपुराण का पाठ सुनना चाहिए और मन में असात्विक विचारों को आने से रोकना चाहियें, शिवरात्रि के अगले दिन यानी चतुर्दशी को सवेरे जौ, तिल, खीर और बेलपत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है, महाशिवरात्री के दिन शिवभक्त का जमावडा शिव मंदिरों में विशेष रुप से देखने को मिलता है, भगवान् भोलेनाथ अत्यधिक प्रसन्न होते है।

जब उनका पूजन बेल- पत्र धतुरा का फल एवम् पंचामृत चढाते हुयें पूजन किया जाता है, व्रत करने और पूजन के साथ जब रात्रि जागरण भी किया जाये, तो यह व्रत और अधिक शुभ फल देता है. इस दिन भगवान् शिवजी की शादी हुयीं थी, इसलिये रात्रि में शिव की बारात निकाली जाती है, सभी वर्गों के लोग इस व्रत को कर पुन्य प्राप्त कर सकते हैं।

कथा

एक बार एक गाँव में कोई शिकारी रहता था, पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था, वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका, क्रोधवश साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया. संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा. चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि की कथा भी सुनी. संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और उसे ऋणमुक्त कर दिया।

अपनी दिनचर्या की भाँति वह जंगल में शिकार के लिए निकला, लेकिन दिनभर बंदीगृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था, शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा, बेल-वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढँका हुआ था, शिकारी को उसका पता न चला, पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियाँ तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं।

इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और रात्रि में एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुँची, शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची तब मृगी बोली- मैं गर्भिणी हूँ, शीघ्र ही प्रसव करूँगी, तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे जो ठीक नहीं है? मैं अपने बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे सामने प्रस्तुत हो जाऊँगी, तब तुम मुझे मार लेना, शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी झाड़ियों में लुप्त हो गयी।

शिकार को खोकर उसका माथा ठनका, वह चिंता में पड़ गया. रात्रि का अगला पहर बीत रहा था, तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली, शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था, उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर न लगायी, वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली- हे पारधी! मैं इन बच्चों को पिता के हवाले करके लौट आऊँगी. इस समय मुझे मत मारो, शिकारी हँसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूँ, मैं ऐसा मूर्ख नहीं।

इससे पहले भी मैं अपना शिकार खो चुका हूँ. मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे, उत्तर में मृगी ने फिर कहा, ‘जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी, इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान माँग रही हूँ, हे पारधी! मेरा विश्वास करो, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूँ।

मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गयी और उसने उस मृगी को भी जाने दिया, शिकार के आभाव में बेलवृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था, पौ फटने को हुई तो एक हष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया, शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा, शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला- हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों और छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है तो मुझे भी मारने में विलंब न करो।

ताकि उनके वियोग में मुझे एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े, मैं उन मृगियों का पति हूँ, यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण जीवनदान देने की कृपा करो, मैं उनसे मिलकर तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊँगा, मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटना-चक्र घूम गया, उसने सारी बातें उस मृग को सुना दी, तब मृग ने कहा, ‘मेरी तीनों पत्नियाँ जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएँगी।

अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो, मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूँ, उपवास, रात्रि जागरण और शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से, तथा जितनी बार बैल वृक्ष पर हिलने से जलपात्र से जल निकल कर शिवलिंग पर चढ़ने के कारण शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल और पवित्र हो गया, उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था, धनुष और बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गये।

भगवान शिव की अनुकम्पा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया, वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा, थोड़ी ही देर बाद मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई, उसके नेत्रों से आँसुओं की झड़ी लग गयीं।

उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया, देव लोक से समस्त देवता भी इस घटना को देख रहे थें, घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प वर्षा की, तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुयें।
जिस प्रकार शिकारी और मृग परिवार को मोक्ष देकर कल्याण किया, उसी प्रकार भगवान् भोलेनाथ आप सभी भाई-बहनों के ताप-संताप हर कर शिव-भक्तों का कल्याण करें, जो अमृत पीते हैं उन्हें देव कहते हैं, और जो विष को पीते हैं उन्हें देवों के देव महादेव कहते हैं, भगवान् भोलेनाथ आपकी सारी मनोकामनायें पूर्ण करें।