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हिना व सुनीता ने पेंटिंग के जरिये अपनी कला का किया बेहतरीन प्रदर्शन

पंचकूला। कहते हैं मुकद्दर में जो होगा वह मिलकर रहेगा लेकिन मुकद्दर का सिकंदर बनने के लिए अथक मेहनत बड़ी निष्ठा और लगन के साथ करनी ही पड़ती है और जब मेहनत का रंग चमकता दमकता है तो जमाना वाह-वाह और वाह कर उठता है।

ऐसी ही सच्ची प्रेरणादायी दास्तां है धर्म जाति नस्ल भेदभाव से ऊपर उठकर दो सहेलियों की कला को समर्पित शौक और फिर रोजी-रोटी का जरिया बनने की। जी हां हिंदू और मुस्लिम समाज की ये दो लड़कियां जो आपस में सहेलियां भी हैं और कला को समर्पित दो प्रेरणा दाई शख्सियत भी।

तीसरी क्लास से ही था पेंटिंग का शौंक

सुनीता साहू जो एक झोपड़ी में रहती है उसके पिता राज मिस्त्री का काम करके परिवार की जीविका चला रहे हैं पांच भाई-बहनों का यह हंसता खेलता परिवार और कला को समर्पित इनकी बेटी सुनीता तीसरी जमात से ही हाथ में पेंटिंग ब्रश लेकर कागज के टुकड़ों को रंगों की सुमेल बारीकियों से जान डालती है। ये तस्वीरें खूब चलता फिरता जीवन प्रस्तुत करती हैं।

इन दोनों सहेलियों की बनाई हुई पेंटिंग की खासियत यह है कि आज इनको अच्छा खासा नाम मिलता है इनके कदरदान और खरीदार भी बहुत हैं ऐसा भी नहीं है कि इन दोनों की पेंटिंग्स ओने पौने दाम में जाती हैं बल्कि इनको खूब अच्छा मानदेय दिलाती हैं और दोनों के चेहरे पर आत्म सम्मान की मुस्कान बताती है कि उड़ान अभी और दूर है और लंबी है लेकिन थकावट का दूर-दूर तक नामोनिशान नहीं है।

सुनीता साहू की सहेली मुस्लिम समाज से है हिना इसका नाम है हिना की मेहनत का रंग मुंह बोलती पेंटिंग्स के जरिए झलकता है। हिना की मां लोगों के घरों में काम करके परिवार की जीविका चला रही हैं। गांव कांसल में रहता यह मुस्लिम परिवार किसी के आगे हाथ फैलाने की बजाय अपनी मेहनत की रोटी खाने में विश्वास रखता है हिना और सुनीता की दोस्ती की गांठ इतनी गहरी है कि एक अगर किसी पेंटिंग में रंग अधूरा छोड़ देती है तो दूसरा हाथ तुरंत उस पेंटिंग में पहले सोचे हो रंगों की सुमेल परिकल्पना को गिफ्ट कर देती है यानी दोनों के दिमाग एक जैसे सरपट भागते हैं।

इन्होंने किसी भी प्रकार की कहीं से कोई ट्रेनिंग भी नहीं ली है। कभी बचपन में धरती पर हाथों की उंगलियों से चित्रकला करने का जज्बा आज परवान चढ़कर इनकी सफलता की कहानी बोलता है। इनकी पेंटिंग को देखकर अच्छे खासे पेंटर कलाकारों को उंगलियां दांतो तले दबाने को मजबूर कर देती हैं। आशा नामक NGO ने हीं इनकी बाजू पकड़ी है और इनके हौसला अफजाई की है।