Home » Videos » हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी, साफ अक्षरों में लिखा करें डॉक्टर

हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी, साफ अक्षरों में लिखा करें डॉक्टर

डॉक्टरों की लिखावट को लेकर बहुत से चुटकुले लिखे जा चुके है। अक्सर ये देखा गया है कि डाक्टर्स द्वारा मरीजों के कार्ड पर इतनी बुरी हैंडराइटिंग में लिखा होता है कि उसे पढ़ पाना लगभग नामुमकिन सा लगता है।

अब उड़ीसा सरकार ने इस पर सख्ती दिखाते हुए डॉक्टरों की लिखावट पर  राज्य सरकार से एक सर्कुलर जारी करने को कहा है। जिसमें डॉक्टरों को पढ़े जा सकने वाले, बड़े अक्षरों में नुस्खा लिखने का निर्देश दिया जाए। हाई कोर्ट ने कहा कि यह जरूरी है कि डॉक्टर कम्युनिटी खुद आगे बढ़कर नुस्खे को अच्छी लिखावट में लिखने की कोशिश करे।

उड़ीसा सरकार ने डॉक्टरों की भद्दी लिखावट के प्रति नाराजगी ज़ाहिर की। कोर्ट ने डॉक्टरों की लिखावट पर टिप्पणी करते हुए उन्हें मरीजों के कार्ड पर दवाई व अन्य नुस्खे बड़े अक्षरों में लिखने की हिदायत दी। ताकि उन्हें आसानी से पढ़ा जा सके।

दरअसल उड़ीसा के कोर्ट में एक केस की सुनवाई के दौरान एक आरोपी को उसकी बीमार पत्नि के साथ रहने के लिए एक हफ्ते कि जमानत देनी थी। आरोपी की पत्नी का इलाज ब्रह्मपुर के एमकेसीजी अस्पताल में चल रहा है। जिसके लिए कोर्ट ने पहले आरोपी व्यक्ति की पत्नी की मेडिकल कंडिशन जानने के लिए सबूत के तौर पर उसकी मेडिकल रिपोर्ट मंगवाई।

लेकिन इस मेडिकल रिपोर्ट में लिखी डॉक्टर की लिखावट को पढ़ व समझ पाने में कोर्ट को काफी परेशानी हुई। जिस पर उन्होंने डॉक्टर्स की इस तरह की लिखावट पर खेद जाहिर करते हुए टिप्पणी कर दी।

हाई कोर्ट ने कहा, ‘प्रफेशनल और मेडिको-लीगल दोनों ही मामलों में डॉक्टर अपनी रिपोर्ट और प्रिस्क्रिप्शन पढ़ने लायक लिखा करें। इसके लिए उनमें जागरूकता लाने के लिए जरूरी कदम उठाए जाएं।’ हाई कोर्ट ने कहा कि यह जरूरी है कि डॉक्टर कम्युनिटी खुद आगे बढ़कर नुस्खे को अच्छी लिखावट में लिखने की कोशिश करे।

ताकि मरीज की मेडिकल रिपोर्ट पर लिखी गई दवाई व नुस्खे पढ़ने में फार्मासिस्ट को परेशानी न हो। इस तरह की लिखावट पढ़ने में परेशानी होने के कारण मरीज के इलाज में किसी तरह की कोई परेशानी न हो और समय रहते मरीज को सही इलाज हो सके।

न्यायमूर्ति पाणिग्रही ने कहा, ‘कई मौके पर फार्मासिस्ट को नुस्खा पढ़ने में समस्या आती है। यहां तक कि कुछ डॉक्टर अपनी ही लिखावट नहीं पढ़ पाते हैं।’ कोर्ट ने कहा कि अधिनियम-2016 के अनुसार यह अनिवार्य है कि डॉक्टर दवा को उसके जेनेरिक नाम में और बड़े अक्षरों में ही लिखें।