अष्टमी और नवमी की तारीख की दुविधा को लेकर ज्योतिषी बोले दुर्गा अष्टमी को लेकर विभिन्न मतों के कारण लोगों में दुविधा है कि अष्टमी किस दिन की जाए। कुछ लोग 23 अक्टूबर, 2020 शुक्रवार को अष्टमी मना रहे हैं तो कुछ लोग 24 अक्टूबर, 2020 शनिवार को कर रहे हैं। ज्योतिषियों के अनुसार निर्णय सिंधु के अनुसार व्रत का निर्धारण करने के लिए सिद्धांत है कि सूर्योदय के समय जो दिन होगा वह एक घड़ी से कम हो तो अगली तारीक मानी जाएगी। यदि अगले दिन भी सूर्योदय के बाद वही दिन एक घड़ी से अधिक है तो व्रत अगले दिन की तिथि में माना जाएगा।
उनका कहना है कि 23 अक्टूबर को सूर्योदय 6.35 के समय सप्तमी तिथि है जो 58 पल रहेगी। यहां एक घड़ी से कम होने के कारण 23 अक्टूबर को अष्टमी तिथि मानी गई है।
वहीं, 24 अक्टूबर को शहर में सूर्योदय 6.35 के समय अष्टमी तिथि है जो एक घड़ी और एक पल रहती हैं इसलिए अष्टमी व्रत 24 अक्टूबर को मनाई जा सकती है। बाकी सबके के लिए सुझाव है कि जिस क्षेत्र में सूर्योदय सुबह 6.35 से पहले हो वहां अष्टमी 23 अक्टूबर शुक्रवार को मनाई जाएं और जहां पर सूर्योदय सुबह 6.35 के बाद है वहां इसे 24 अक्टूबर शनिवार को मनाना शास्त्र संगत में जरूरी माना गया है। दिल्ली में सूर्योदय 6.31 और मुंबई में 6.40 पर हुआ। ज्योतिषियों के अनुसार लोग अपनी आस्था और सुविधानुसार दोनों में से किसी दिन भी मना सकते हैं। कुछ लोग सप्तमी का व्रत रखते हैं। कन्या पूजन अष्टमी और नवमी पर कर सकते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि नौ देवियों के रूप में अष्टमी या नवमी के दिन व्रत को तोड़ने से पहले नौ कन्याओं का पूजन करना चाहिए। ये नौ कन्याएं नौ देवियों का ही रूप मानी जाती है।
कन्याओं का पूजन की विधि
कन्याओं को उनकी आवश्यकतानुसार, आयु तथा रुचि अनुसार गिफ्ट दे सकते हैं। दुर्गाष्टमी को कन्या पूजन करके व्रतादि का उद्यापन करना शुभ होता है।
अष्टमी पर 9 साल की 9 कन्याओं और एक बालक को अपने निवास पर आमंत्रित करे। उनके चरण धोएं, इसके बाद माथे पर लाल टीका लगाएं। कलाई पर मौली बांधें। लाल पुष्पों की माला पहनाएं। उनका पूजन करके उन्हें हलवा, पूरी, काले चने का प्रसाद दें या घर पर ही इसे खिलाएं। चरण स्पर्श करके उनका आशीर्वाद लें।
कोरोना काल में कैसे करें कंजक पूजन?
वर्तमान परिस्थितियों में जहां फेस्टिवल सीजन में पराली दहन, आपसी दूरी बना कर न रखना, मास्क न पहनने के कारण संक्रमण बढ़ सकता है। ऐसे में लोग घर में ही मौजूद कन्याओं और एक छोटे बालक के पूजन से ही काम चला सकते हैं।
शगुन एवं परंपरा के लिए हलवा, पूरी, काले चने उतने ही बनाएं जितना बांट सकें। गरीब बस्तियों में इसके उपहार के पैकेट बना कर नियमों का पालन करते हुए वितरित कर सकते हैं।