कोरोना वायरस के चलते किसी ने भी ऐसा नहीं सोचा था कि नवरात्रों में कन्या के रूप में मातारानी मुंह पर मास्क बांध कर आपके घर आएंगी। जी हां देवी मां की कृपा से इस बार अनोखे ढंग से मां के भक्तों ने कन्या पूजन किया। हर घर में मां की आरती की आवाजें और कन्याओं की चहकती आवाजों ने नवरात्रों का उत्साह और जोश बढ़ा दिया हैं। नगर सुधार सभा पंचकूला के चेयरमैन तरसेम गर्ग ने सोशल डिस्टेंसिंग की पालना करते हुए अष्टमी के दौरान विधिवत कन्या पूजन किया और परिवार के साथ माता रानी का आर्शीवाद लिया।
शारदीय नवरात्रों में कन्या पूज
मां की विशेष कृपा पाने के लिए भक्त 9 दिनों का व्रत करते हैं। ऐसी मान्यता है कि यह 9 दिनों का व्रत कन्या पूजन से ही संपन्न होता है इसलिए कन्याओं को मां दुर्गा का प्रतीक मानकर उनका पूजन किया जाता है। इससे देवी मां अत्यंत प्रसन्न होती हैं और भक्तों को खुशहाली और समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं।
नन्हीं उम्र की कन्याओं को ही घर पर बुलाएं
कन्या पूजन सप्तमी, अष्टमी या नवमी में किसी भी दिन किया जा सकता है। ख्याल रखें कि कन्याओं की उम्र 2 से 7 साल के बीच होनी चाहिए।
बालक को बैठाना जरूरी
कन्या पूजन में बालक को जरूर आमंत्रित करने का नियम है। कहा जाता है कि ऐसा न करने पर कन्या पूजन पूरा नहीं माना जाता।
पानी और दूध से धोएं पैर
कन्या पूजन करने से पहले कन्याओं के पैर दूध या फिर पानी से अपने हाथों से साफ करें। इसके बाद उनके पैर छूकर उन्हें साफ स्थान पर साफ कपड़ा बिछाकर बैठाएं।
ये बातें जरूर जान लें
कन्याओं के माथे पर अक्षत, फूल और कुमकुम का तिलक लगाएं। कन्याओं को खीर-पूड़ी का प्रसाद खिलाएं। नमकीन में चना भी खिला सकते हैं।
कन्याओं को विदा करते समय जरूरी नियम
कन्याओं को भोजन कराने के बाद उन्हें दान में रूमाल, लाल चुनरी, फल और खिलौने देकर उनके चरण छुकर आर्शीवाद लें। इसके बाद कन्याओं को खुशी-खुशी विदा करें। ऐसा करने से मातारानी की कृपा और उनका आर्शीवाद आप और आपके परिवार पर बना रहेगा।
नवरात्रि कन्या पूजन की पुरानी कथा
माता का भक्त पंडित श्रीधर अपनी पत्नी के साथ रहता था। जिसकी कोई संतान नहीं थी। एक दिन उन्होंने नवरात्र में कुंवारी कन्याओं को आमंत्रित किया। इसी बीच मां वैष्णों ने कन्या रूप धारण कर कन्याओं के बीच आकर बैठ गईं। सभी कन्याएं तो भोजन करके और दक्षिणा लेकर चली गईं लेकिन मां वैष्णों वहीं बैठी रहीं। उन्होंने पंडित श्रीधर से कहा कि तुम अपने घर पर एक भंडारे का कार्यक्रम रखों और उसमें पूरे गांव को आमंत्रित करो। इसी भंडारे में भैरोनाथ भी आया और वहीं पर उसने माता रानी को पहचान लिया और पीछा करने लगा लेकिन मां ने भैरोनाथ का अंत करने के साथ ही उसका उद्धार किया।