पठान कोट से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर हिमाचल प्रदेश के कांगडा जिले में एक ऐसा अदभूद मंदिर मौजूद है जिसके दर्शन करने से मन रोमांचित हो जाता हैै। हम बात कर रहें हैं ऐतिहासिक शहर नूरपुर के प्राचीन किला के मैदान में स्थित भगवान श्री बृजराज स्वामी जी का मंदिर प्रदेशवासियों की आस्था का केंद्र है। यह विश्व का एकमात्र ऐसा मंदिर है, यहां भगवान श्री कृष्ण के साथ राधा नहीं बल्कि मीरा बाई की मूर्ति साथ है। यह दोनों प्रतिमाएं ऐसी लगती हैं मानों आपके सामने साक्षात भगवान श्री कृष्ण व मीरा बाई एकसाथ खड़े हों।
जन्माष्टमी पर स्पेशल प्रोग्राम
प्रेम व आस्था के संगम के प्रतीक इस मंदिर का नूर जन्माष्टमी को छलक उठता है। जन्माष्टमी के पावन अवसर पर इस ऐतिहासिक मंदिर की रौनक देखते ही बनती है, जहां दूर-दूर से हजारों की संख्या में लोग मंदिर में शीश नवाते हैं।
इतिहास की रोचक कथा..
इस मंदिर के इतिहास के साथ एक रोचक कथा जुड़ी हुई है। यह बात (1629 से 1623 ई.) उस समय की है जब नूरपुर के राजा जगत सिंह अपने राज पुरोहित के साथ चितौडग़ढ़ के राजा के बुलावे पर मिलने वहां गए। राजा जगत सिंह ने रात्रि विश्राम के लिए जो महल दिया, उसके बगल में एक मंदिर था। जहां रात के समय राजा को उस मंदिर से घुंघरूओं तथा संगीत की आवाजें सुनाई दी। राजा ने जब मंदिर में बाहर से अंदर झांक कर देखा तो एक महिला श्रीकृष्ण की मूर्ति के सामने भजन गाते हुए नाच रही थी।
राजा ने सारी बात राज पुरोहित को सुनाई। पुरोहित ने भी पसी पर चितौडग़ढ़ के राजा से इन मूर्तियों को उपहार में मांगने का सुझाव दिया, क्योंकि श्री कृष्ण व मीरा की यह मूर्तियां अदभूद और साक्षात दिख रही थी। जगत सिंह ने पुरोहित बताए अनुसार वैसा ही किया। चितौडग़ढ़ के राजा ने भी खुशी-खुशी से मूर्तियां व मौलश्री का पेड़ राजा जगत सिंह को भेंट कर दिया।
नूरपुर के राजा ने अपने दरबार-ए-खास को मंदिर का रूप देकर इन मूर्तियों को वहां पर स्थापित कर दिया। राजस्थानी शैली की काले संगमरमर से बनी श्रीकृष्ण व अष्टधातु से बनी मीरा की मूर्ति आज भी नूरपुर के इस ऐतिहासिक श्री बृजराज स्वामी मंदिर में बिराजमान है। मंदिर की भित्तिकाओं पर कृष्ण लीलाओं का चित्रण दर्शनीय है। इस स्थान पर हर साल जन्माष्टमी का उत्सव हर साल बढ़ी धूम-धाम से मनाया जाता है।
पिछले कुछ समय से मौल श्री का पेड़ अपनी आयु सीमा पूरी करने के बाद क्षतिग्रस्त हो गया। मंदिर कमेटी ने उस पेड़ को बचाने के लिए विशेषज्ञों की सहायता भी ली लेकिन पेड़ नहीं बच सका, कुछ समय पूर्व मंदिर कमेटी ने मौल श्री का नया पौधा रोपा है।