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हिम्मत और हौंसले का नाम है जिंदगी, पढि़ए ऐसे ही एक सच्ची कहानी

  • बचपन में शुगर थी 520, शादी के बाद किडनी डेमेज, ट्रांसप्लांट के बाद अब बिल्कुल फिट

बचपन में शुगर होने के साथ दुसरी बीमारियों ने जकड़ा लेकिन हौंसला और मरे आत्मविश्वास ने जिंदगी जीने का जजवा कायम रखा – चंडीगढ़ के निवासी 51 साल के विज्ञान अरोड़ा को जिदंगी ने क्या क्या रंग नहीं दिखाए लेकिन उन्होंने अपनी हार नहीं मानी और सफल सीए बनने के साथ साथ जिंदगी के साथ संर्घष करते रहें। दैनिक भास्कर को एक इंटरव्यू में विज्ञान ने अपनी कहानी बताई है।

अप्रैल 1981 में जब मैं सवा ग्यारह साल का था तो मेरा एकाएक वजन कम होना शुरू हो गया। प्यास भी ज्यादा लगने लगी, बार-बार बाथरूम जाना पड़ता, कुछ समझ में नहीं आया। मम्मी ने नोटिस किया कि वेट कम हो रहा है तो उन्होंने मुझे जीएमएसएच-16 में डॉ. मनोचा को दिखाया। मेरे टेस्ट हुए तो पता चला कि मैं डायबिटिक हूं। शुगर लेवल 520 भी आसपास था।

16 दिन तक सेक्टर-16 हॉस्पिटल में भर्ती रहा। दवाइयां लगातार चली और इससे मेरी शुगर कुछ नॉर्मल हो गई। उस समय ब्लड शुगर टेस्टिंग की डिजिटल मशीन भी नहीं आती थी। तीन महीने के बाद सेक्टर-16 की लैब में टेस्ट होता था। कुछ समय बाद मैं कुछ ठीक हुआ तो फिर से लापरवाह हो गया।

दो-तीन साल मैंने शुगर की परवाह करना छोड़ दी। फिर फरवरी 1986 में फिर सेक्टर-16 हॉस्पिटल में गया। लेकिन वहां डॉक्टर्स से जवाब मिला कि अब तो आप 16 साल के हो चुके हो, पीजीआई में जाकर दिखाओ। इसके बाद पीजीआई गया। पीजीआई के डॉक्टर्स ने एक महीने में मेरी शुगर व अन्य बिमारियों को कंट्रोल कर लिया।

मैं चार साल तक पीजीआई गया। सीए कर रहा था तो मेरा दिल्ली आना-जाना लगा रहता था। वहीं पीजीआई के रेफरेंस पर एम्स (नई दिल्ली) में दिखाना शुरू किया। वहां पर करीब 7 साल इलाज चला, 1997 में मेरी शादी हुई तो फिर से मैं पीजीआई में डॉ. अनिल भंसाली ने इलाज शुरू किया। उस समय मेरा शुगर लेवल ठीक चल रहा था।

वहां 2005 तक इलाज चला, लेकिन इसी साल मुझे किडनी में दिक्कत होने लगी। मेरा क्रिटानाइन बढऩा शुरू हो गया। वहीं पीजीआई इंडोक्रायोनोलॉजी डिपार्टमेंट के एचओडी प्रो. संजय बडाडा ने मुझे डायबिटीज के साथ किडनी का भी इलाज शुरू कराने की सलाह दी।

प्रो. केएस चुघ ने मेरा किडनी का इलाज शुरू किया। लेकिन 2017 में प्रो. चुघ की मौत के बाद प्रो. विनय सखूजा जो नेफ्रोलॉजिस्ट हैं, उन्होंने इलाज शुरू किया। मेरा क्रिटानाइन कंट्रोल नहीं हो रहा था। लकिन जुलाई 2019 में मेरा क्रिटानाइन ज्यादा बढ़ गया कि पीजीआई के असिस्टेंट प्रो. राजा रामचंद्रन ने बताया कि मेरी किडनी इतनी ज्यादा डेमेज हो चुकी हैं कि एक साल के भीतर ट्रांसप्लांट करानी पडेगी।

शुगर को कंट्रोल करने के लिए प्रो. बडाडा ने मुझे इंसुलिन पंप लगवाया, जो इस रीजन में सबसे पहले मुझे ही लगाया गया था। इससे शुगर कंट्रोल और किडनी पर भी ज्यादा असर नहीं होता। डॉक्टर्स ने बताया कि पैंक्रियाज भी एकसाथ ट्रांसप्लांट करवा सकते हो। 6 जनवरी 2020 को मेरा साइमलटेनिस पैंक्रियाज एंड किडनी ट्रांसप्लांट (एसपीकेटी) हुआ।

रीनल ट्रांसप्लांट के एचओडी प्रो. आशीष शर्मा ने मुझे डरा हुआ देख मेरा हौंसला बढ़ाया क्योकि पैंक्रियाज ट्रांसप्लांट का सक्सेस रेट कम है। बहुत कम लोग ही होते हैं जो किडनी और पैंक्रियाज ट्रांसप्लांट के बाद ज्यादा दिन सर्वाइव कर पाते हैं।अब ट्रांसप्लांट करवाएं एक साल हो चुका है और मैं बिल्कुल ठीक हूं। रेगुलर दवाएं ले रहा हूं। शुक्रगुजार हूं पीजीआई का, जिसकी वजह से मुझे एक तरह से नई जिंदगी मिली।