पिछले साल 22 मार्च को जनता कर्फ्यू लगाया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा के बाद पूरे देश की तरह सिटी ब्यूटीफल के लोग भी अपने घरों में कैद हो गए थे। जानलेवा बीमारी से खुद को बचाने के लिए लोगों ने भी पुरा साथ दिया और बाहर नहीं निकले। टूरिस्टों से खचाखच हरा भरा रहने वाला सिटी खाली-खाली नजर आने लगा। बूथ मार्केट से लेकर प्लाजा तक सूने पड़े रहे। उस समय कोरोना पर लगाम लगाने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग कारगर हथियार माना गया था और इसी दिशा में जनता कर्फ्यू एक पहला कदम था।
कैसी बेपरवाही जो पडेगी भारी
लेकिन अब एक साल बाद देखा जाएं तो सिटी ब्यूटीफुल के लोग काफी हद तक बेपरवाह हो गए हैं। मास्क न लगाने के अनगिनत बहाने बनाते हैं। सोशल डिस्टेंसिंग भी नहीं रख रहें हैं। हर जगह भीड़ भाड़ लगा दी गई हैं। आंकडों के हिसाब से देखे तों सिर्फ मार्च महीने में चंडीगढ़ में 24 घंटे में 200 से अधिक संख्या में कोरोना केस सामने आए।
वैक्सीन इलाज नहीं सिर्फ इम्यूनिटी बूस्टर
हमें यह समझना होगा कि वैक्सीन एक इम्यूनिटी बूस्टर है और लोगों ने इसको इलाज समझकर लापरवाही बरतनी शुरू कर दी है। जबकि डॉक्टरों का मानना है कि वैक्सीन इलाज नहीं इम्यूनिटी बूस्टर है और जब तक 40 से 50 करोड़ लोगों को वैक्सीन नहीं लग जाती तब तक इसको हर्ड इम्यूनिटी नहीं आएगी। दरअसल हर्ड इम्यूनिटी की जरूरी शर्त वैक्सीनेशन है, जिससे लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है। वैक्सीन के आते ही लोगों ने लापरवाही बरतनी शुरू कर दी है जैसे मास्क का ढंग से इस्तेमाल ना करना और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन ना करना।
अगर लोग निर्देशों का पालन नहीं करेंगे तो 1 साल पहले वाली स्थिति फिर से देखने को मिल सकती है। इसलिए हमें अपने लेवल पर प्रिकॉशंस अपनाकर सरकार का समर्थन करना होगा जिससे की हम कोरोना को हरा सके।