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पंचकूला में कोरोना ने ली डॉक्टर पेरेंट्स की जान, बेटी ने लगाया लापरवाही का आरोप

28 साल की किरन शर्मा बेहद दुखी और हताश है। क्योंकि उसने अपने डॉक्टर माता-पिता को तीन ही दिन में कोविड-19 खो दिया है। किरन इस बात से हैरान है कि कैसे लाखों जिंदगियां बचाने वाले डॉक्टर पेरेंट्स के इलाज में हॉस्पिटल ने लापरवाही बरती। पॉजिटिव होने के बाद पहले पिता की मौत हुई उसके तीन दिन बाद ही कोविड के चलते माता ने भी दम तोड़ दिया। इस महामारी ने बेटी को अनाथ कर दिया है। इस समय रिश्तेदार भी सपंर्क में नहीं है वे विदेशों में सैटल हैं।

किरन ने बताया कि उसके पिता डॉ. अजय शर्मा (58 साल ) पिछले चार साल से नेशनल हैल्थ मिशन प्रोग्राम के जरिए अंबाला के नारायणगढ़ हॉस्पिटल में तैनात थे। सर्जन होने के साथ वह एनीस्थिया के मशहूर डॉक्टर भी थे।

वहीं किरन ने आरोप लगाया कि डायबिटिक होने के बावजूद उनकी ड्यूटी कोविड वार्ड में लगा दी गई थी। वह 16 अप्रैल से 29 अप्रैल तक अंबाला शहर के कोविड वार्ड में ड्यूटी देते रहे। इस दौरान उन्होंने छह दिन लगातार 24-24 घंटे तक ड्यूटी देते रहे, जिससे वह खुद ही संक्रमित हुए और 11 मई को मौत हो गई।

वहीं माता डॉ. इंदु शर्मा बरेली में एक निजी अस्पताल में सर्जन थी। वह भी कोरोना के चलते तीन दिन बाद ही हॉस्पिटल में दम तोड़ गई।

किरन ने बताया कि उसके पिता डा. अजय शर्मा की 7 मई को हालत खराब हुई थी। डॉक्टर संजीव संधु एसएमओ नारायणगढ़ ने उन्हें अंबाला के डिस्ट्रिक हॉस्पिटल में भर्ती करवाने के लिए भेजा गया था क्योंकि यहां उन्हें सही ढंग से इलाज देने के लिए सीटी स्कैन मशीन नहीं थी।

किरन ने बताया कि जब वह रामगढ़ से अंबाला हॉस्पिटल में पहुंची तो देखा कि वे ऑक्सीजन का इंतजार कर रहे हैं। वहां अस्पताल के डाक्टर उन्हें ड्रिप तक नहीं लगा रहे थे। जबकि उनका शुगर लेवल 700 तक पहुंच चुका था। उन्हें इन्सुलिन की जरूरत थी। लेकिन बार-बार कहने के बावजूद किसी ने उन्हें इन्सुलिन का इंजेक्शन नहीं लगाया। मैंने डॉक्टरों से कहा कि अपने पिता को मैं और मेरे साथ अटेंडेंट पकड़ लेंगे आप इंजेक्शन लगाएं, लेकिन किसी ने ऐसा नहीं किया। डॉक्टर ने इस पर मुझे कहा कि आपके पिता ने इंजेक्शन लेने से मना कर दिया था। आखिरी समय में आधे घंटे तक मेरे पिता अस्पताल में तड़पते रहे वेंटिलेटर और आइसीयू तो दूर की बात डॉक्टर को बार-बार बुलाने के बावजूद वहां कोई नहीं आया। अगले दिन मेरे पिता की मौत हो चुकी थी।

मैंने अपनी मां को पिता की मौत की खबर नहीं बताई क्योकि वह भी बीमार चल रही थी । उनका कुछ दिन पहले रैपिड टेस्ट किया गया जोकि पॉजिटिव आया। एंटीबायोटिक और बुखार की दवा खाकर डॉक्टर ने उसे रेस्ट करने के लिए कहा था। वह मेरे पास रामगढ़ में रह रही थी।

पिता के अंतिम संस्कार के बाद ही किरन को फोन से पता चला कि माता इंदू शर्मा भी किचन में अचेत होकर गिर पड़ी हैं। घर पहुंची तो पता चला कि उनका ऑक्सीजन लेवल कम हो गया है और सांस लेने में तकलीफ हो रही है।

उन्हें पंचकूला के सेक्टर-6 स्थित सिविल हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया। लेकिन लगातार ऑक्सीजन स्तर गिरता जा रहा था। इस दौरान उन्हें वेंटिलेटर नहीं मिल पा रहा था। किरन ने बताया कि सिफारिश के बाद वेंटिलेटर तो मिल गया लेकिन मेरे मम्मी नहीं बच पाई।

उन्होने बताया कि मां को तो जैसे-तैसे इलाज मिल गया। लेकिन मेरे पिता के केस में बहुत लापरवाही बरती गई। जबकि वह अभी भी उसी स्वास्थ्य विभाग में सेवाएं दे रहे थे, जहां उन्हें इलाज नहीं मिला।

किरन ने रोते हुए बताया कि मैं अपने पिता को देखने अंबाला चली गई थी। 9 मई को मम्मी का फोन आया कि उन्हें दिक्कत हो रही है। वापस पंचकूला पहुंची और मम्मी को अस्पताल लेकर गई। यदि पहले ही दिन मेरे मम्मी को एडमिट कर लिया जाता और सीटी स्कैन उसी दिन करवा दिया जाता तो शायद उनकी जान बच सकती थी।