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ट्रैफिक पुलिस के सामने हो रही बाल मजदूरी

पंचकूला। ट्राईसिटी में विकास बहुत ही तेज गति से हो रहा है। साथ ही लोगों की सुविधा अनुसार नए-नए कानून बनाए जा रहे है। जिसका काफी सख्ती से पालन भी किया जाता है। ऐसा ही एक कानून है, बाल-मजदूरी जो की न सिर्फ ट्राईसिटी में बल्कि पूरे देश में बैन है।

बाल-मजदूरी करवाना कानूनी रूप से अपराध है तथा इसे कानून द्वारा पूरी तरह से बैन कर दिया गया है। लेकिन फिर भी ट्राईसिटी में लगभग हर मेन चौराहों व सडक़ों के किनारों पर अभी भी छोटे-छोटे मासूमों से बाल-मजदूरी करवाई जाती है।

सभी मेन चौराहों जहां पर हैवी ट्रैफिक रहता है, वहीं पर खिलौने व गुब्बारे वाले बच्चों का धंधा जोरों पर है। ट्राईसिटी में करीब हर एक चौक पर चारों तरफ खिलौने व गुब्बारे बेचने वाले अपने बच्चों के साथ एक साइड में बैठे रहते हैं। जैसे ही लाइट लाल हुई, ये बच्चे दौड़कर वाहनों के आगे पहुंच जाते हैं तथा अपने खिलौने, गुब्बारे व अन्य सामान बेचने के लिए वाहनों की खिड़की व शीशे के पास आकर खड़े हो जाते है। इनमें करीब तीन साल से लेकर 10 से 12 साल तक की उम्र के बच्चे ज्यादातर होते हैं।

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ये बच्चे एकदम से वाहन के सामने आ जाते हैं जिससे अनेक बार दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। इनके कारण वाहन चालकों को बेवजह परेशानी का सामना करना पड़ता है। इसकी वजह से कई बार झगड़े भी हो चुके हैं। नगर सुधार सभा, पंचकूला के चेयरमैन तरसेम गर्ग का कहना है कि इस सबके बावजूद ट्रैफिक पुलिस इनको नजरंदाज करती रहती है तथा इनके खिलाफ कोई भी एक्शन नहीं लिया जाता।

साथ ही यह सरकार के ‘बाल मजदूरी निषेध’ की भी पोल खोलता है। जबकि सरकार शत-प्रतिशत साक्षरता की बात करती है, मगर ट्राईसिटी में चौराहों व लाइट प्वाइंटों पर सामान बेचते छोटे-छोटे बच्चों को देखकर नहीं लगता कि सरकार का शत-प्रतिशत साक्षरता का दावा उचित है।

गर्ग का कहना है कि यह सब देखकर लगता है कि ट्राईसिटी में NGO चलाने वाली संस्थाएं भी केवल औपचारिकता ही निभा रही हैं तथा समाचार पत्रों में अपने फोटो प्रकाशित करवाकर केवल वाह-वाही लूटने में लगी रहती हैं, जबकि धरातल पर कोई भी काम नहीं हो रहा है।

ट्राईसिटी में सैकड़ों स्लम एरिया के बच्चे चौराहों व लाइट प्वाइंटों पर इस तरह सामान बेचते नजर आते हैं जिनका भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा है। ट्राईसिटी का प्रशासन भी मूकदर्शक बना हुआ है, जिससे यह धंधा दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है।