हर वर्ष की भांति इस बार भी निजी स्कूलों में अभिभावकों की कमर तोड़ फीस बढ़ोतरी के साथ-साथ अन्य स्कूली फंडों में वृद्धि करके अभिभावकों की जेबों पर कुठाराघात किया है और एक बार फिर शिक्षा के क्षेत्र में चंडीगढ़ व पंचकूला के वासियों को व्यवसायिक शोषण का शिकार होना पड़ रहा है। अभिभावकों की ओर से इसका विरोध शुरू-शुरू में किया जाता है और फिर यह मामला राजजीतिक रूप धारण कर ठप्प हो जाता है क्योंकि लगभग सभी निजी स्कूलों के प्रबन्धकों की राजनीति लोगों से अच्छी खासी दोस्ती होती है और यह राजनीति की आड़ में अपने स्कूलों विद्यार्थियों की अधिक सुविधाएं देने के नाम पर खूब मोटी कमाई करते हैं लेकिन सुविधाओं के नाम पर कुछ खास नहीं किया जाता। यही नहीं शिक्षा को व्यवसाय बनाकर ज्यादा से ज्यादा पैसा कमाने की होड़ में अब गांवों तथा कस्बों मेें भी पहुंच चुकी है और अब तो लोगों की जुबान पर बस एक ही बात सुनने को मिलती है कि उनकी जेबों से माया तो खूब गई लेकिन राम के दर्शन अभी तक नहीं हुए। अब तो बस इन स्कूलों का काम किसी न किसी बहाने को टटोलना रह गया है। पंचकूला , चंडीगढ़ तथा आसपास के क्षेत्र से लिये गये कई स्कूलों के सर्वेक्षण के अनुसार जब भी कोई अभिभावक अपने बच्चे को स्कूल में दाखिले के लिये जाता है तो सबसे पहले प्रोस्पैक्टस अभिभावक के हाथों में थमा दिया जाता है जिसका मूल्य स्कूल प्रबन्धकों ने 500 से 2000 रूपये तक रखा गया होता है फिर बच्चे के पंजीकरण के नाम पर भी 500 से 1000 रुपए तक नॉन रिफंडेबल राशि जमा करवा कर प्रवेश टेस्ट के लिये पाठ्यक्रम दे दिया जाता है। इन स्कूलों ने अपने मनमाने तरीके से ट्यूशन फीस की दरें निर्धारित की हुई हैं और फीसें भी इतनी भारी भरकम कि आम आदमी की बस से बाहर होती जा रही हैं।
स्कूल प्रबंधक शिक्षकों का भी खूब कर रहे हैं आर्थिक शोषण
बात यहीं खत्म नहीं हो जाती। निजी स्कूलों के ये प्रबन्धक शिक्षकों का भी खूब आर्थिक शोषण करते हैं। वेतन के नाम पर इन पढ़े-लिखे बेरोजगारों के साथ भद्दा मजाक किया जाता है और उन्हें मात्र 1500 से 5000 रुपए मासिक वेतन दिया जाता है। और हस्ताक्षर अधिक राशि पर कराए जाते हैं। रोजगार छिनने के डर से शिक्षक को इन्हीें पैसों से अपना गुजारा करना पड़ता है और वह मुंह तक नहीं खोल पाते। यदि वह इसका विरोध भी करता है तो उसे अगले दिन ही दूध से मक्खी की तरह निकाल कर बेरोजगारी की कतार में एक बार फिर खड़ा कर दिया जाता है। गर्मी की छुट्टियां आते ही इन शिक्षकों के चेहरों पर मुर्दानगी छा जाती है क्योंकि इन बेचारों की छुट्टियों की तनख्वाह नहीं दी जाती। इन निजी स्कूल प्रबन्धकों का भी खूब धड़ल्ले से राजनीतिकरण हो रहा है। हर निजी स्कूल प्रबन्धक की किसी न किसी राजनैतिक नेता से सांठ-गांठ अवश्य होती है और उसी की आड़ में ये स्कूल प्रबन्धक खूब मनमानी करते हैं।
निजी स्कूलों की मनमानी पर अकुंश लगना जरूरी – तरसेम गर्ग
कांग्रेसी नेता तरसेम गर्ग का कहना है कि निजी स्कूल मनमानी के चलते 134ए को भी पूरी तरह से लागू नहीं कर रहे हैं। गरीब बच्चों को दाखिले के लिए भटकने पर मजबूर होना पड़ रहा है। निजी स्कूल न प्रशासन और न ही सरकार की सुनते हैं, और फीस, ड्रेस, डोनेशन सहित अन्य विभिन्न फंडों के नाम पर अभिभावकों की जेबें काटने का काम करते हैं। यही नहीं जिन स्कूलों को सरकार अनुदान दे रही है वे एडिड स्कूल भी डोनेशन व फंडों के नाम पर खुली लूट मचा रहे हैं। तरसेम गर्ग का कहना है कि जिन स्कूलों ने सरकारी दामों पर प्लॉट लिए हुए हैं, सरकार उनकी मनमानी पर तो अकुंश लगा ही सकती है। उन्होंने कहा कि शैक्षणिक सत्र शुरू होने से पहले ही सरकार तथा स्थानीय प्रशासन को इसका संज्ञान लेना चाहिए।
इसके अलावा प्रवेश शुल्क बिल्डिंग फंड, फैन फंड, स्र्पोट्स फंड, चाइल्ड वेलफेयर फंड, कई स्कूलों में तो धर्म के नाम पर भी मोटी रकम अभिभावकों से वसूली जाती है। इन निजी स्कूलों की लूट यहीं समाप्त नहीं होती बल्कि वार्षिक एवं नियमित फीसों के अलावा किताबों, कॉपियों स्टेेशनरी तथा स्कूली वर्दियों के नाम पर मोटी रकम वसूली जा रही है। कुछ स्कूलों ने तो प्राईवेट पब्लिशरों से स्कूल वर्दियों के नाम पर मोटी रकम वसूली जा रही है। कुछ स्कूलों ने तो प्राईवेट अपने ही स्कूल में ही एक कमरे में इन सभी चीजों को मनमाने रेटों पर बेचने की छूट दे रखी है।कम्प्यूटर के नाम पर तो कई स्कूल बच्चों तथा अभिभावकों के साथ सीधा धोखा कर रहे हैं। कई स्कूलों में तो तीसरी कक्षा तक भी कम्प्यूटर के दर्शन तक नहीं करवाये जाते। कई निजी स्कूल प्रबन्धकों ने तो एक दो नकारा कम्प्यूटर मॉडल रख कर दिखावे के नाम पर धन कमाने का धंधा बना रखा है।