पंचकूला। युवा वर्ग में सेल्फी लेने का क्रेज दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है। चाहे कैसा भी माहौल हो ये सेल्फी लेने से नहीं चूकते। चाहे वे पिकनिक पर हों, कॉलेज ट्रिप पर हों, विवाह समारोह में हों इतना ही नहीं देखने में आया है कि किसी की क्रिया अथवा क्रिमेशन में गए हैं तो भी वे मृत शरीर की फोटो खींचकर मोबाइल पर भेजने से नहीं हटते।
सेल्फी का क्रेज युवा वर्ग में इस कदर बढ़ गया है कि इससे सैकड़ों लोगों की जान तक जा चुकी है। सबसे ज्यादा इसका नुकसान युवा वर्ग को हो रहा है। नौजवान लड़के लड़कियां सेल्फी की यादगार बनाने के लिए रेलवे ट्रैक पर, ऊंची इमारतों पर खड़े होकर, सड़क पार करते समय, नदी में खड़े होकर अथवा ऊंची पहाड़ी के किनारे पर खड़े होकर सेल्फी लेने से नहीं चूकते।
जब भी आपके बच्चे सैर सपाटे के लिए जाते हैं उस वक्त सबसे पहले इनका काम सेल्फी लेना होता है। कई बच्चों की सेल्फी लेने से दुर्घटना हो चुकी है और कुछ बच्चों की तो जान तक जा चुकी है।
सेल्फी लेना कुछ हद तक बुरी बात नहीं। मगर जब आप सड़क पर चल रहे हों, रेलवे ट्रैक पर हों अथवा नदी वगैरह में इंजॉय कर रहे हों तब ऐसी गलती भूल कर भी न करें, इसमें आपकी जान भी जा सकती है।
एक ट्रैंड और भी चलन में है कि बच्चे घर से बाहर निकलते ही अपने कानों में हैड फोन लगा लेते हैं जो संगीत की मस्ती में यह भी भूल जाते हैं कि वो सड़क पार कर रहे हैं या रेलवे ट्रैक पर चल रहे हैं उन्हें पीछे से आते वाहन के हॉर्न की आवाज संगीत की धुन में सुनाई नहीं देती और वे दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं।
हमारे बच्चे इस तरह से दुर्घटनाओं का शिकार न हों इसके लिए हमें अपने बच्चों को घर से निकलते वक्त सख्त हिदायत देनी होगी अथवा उन्हें समझाना होगा कि वे सड़क आदि पर चलते समय अथवा बाइक वगैरह चलाते समय हैड फोन्स का इस्तेमाल बिल्कुल न करें। आपकी जरा सी सावधानी आपके बच्चे को बड़े खतरे से बचा सकती है।
इसके अतिरिक्त स्कूल के टीचर्स को भी बच्चों को सख्त हिदायत देनी चाहिए कि वे क्लास में पढ़ते समय अथवा स्कूल से घर जाते समय हैड फोन और सेल्फी आदि से दूर रहें। देखने में आया है कि 10 से 25 साल तक की उम्र के बच्चे ज्यादा सेल्फी अथवा हेड फोन्स का इस्तेमाल करते हैं जिससे वे दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं।
इसके अतिरिक्त आजकल अधिकांश बच्चे हर समय फोन से फेसबुक और व्हॉटसऐप पर बिजी रहते हैं । इसका सबसे बड़ा नुकसान यह है कि हमारे बच्चे पढ़ाई से हटते जा रहे हैं जो समय उनका स्टडी में लगना चाहिए उस समय वे इसमें लगे रहते हैं। इतना ही नहीं आजकल बच्चे गेम्स आदि में भाग लेने की बजाय मोबाइल पर गेम आदि खेलने में लगे रहते हैं। इससे उनका शारीरिक विकास भी पूरी तरह नहीं हो पाता और वह मोबाइल प्लेयर बनकर रह गए हैं जो आने वाले समय में उनके भविष्य के लिए खतरा है।