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ट्राईसिटी के लाईट प्वाईंटों पर पुलिस की नाक तले हो रही बाल मजदूरी

चंडीगढ़। टै्रफिक सिग्नल इन सामान बेचने वालों का लक्ष्य होता है। कुत्सित कपड़े पहने, हाथ में ऐसी किताबें, फूल, डस्टर, खिलौने, बुक्स्, पायरेटिड सीडी, मौसमी वस्तुएं (जैसे कि झंडा- राष्ट्रीय त्यौहारों के दौरान, फूटबाल- फीफा वल्र्ड कप के दौरान) इत्यादि वस्तुओं की बिक्री करने हेतु ये लोग तभी आते हैं जब ट्रैफिक सिग्नल लाल हो जाता है और वह वास्तव में सिर्फ 180 सेकंड के अंदर ही 200 से 500 मीटर के क्षेत्र में वस्तुओं की विक्री करते हैं। ज्यादातर विक्रेता 18 वर्ष से कम उम्र के होते है।

कैसे पटाते हैं वाहन चालक ग्राहकों को

विक्रेता जो विभिन्न प्रॉडक्ट्स जैसे कार स्टीयरिंग कवर, मोबाइल चार्जर, पेन, मैगजीन, इत्यादि को जो किसी तीसरे पक्ष द्वारा आपूर्ति की जाती है बेचने के लिए रेडलाइट होते ही सामने आ जाते हैं, और उन्हें इस बिक्री में उनका वेतन या फिर कमीशन तय होता है। यदि विक्रेता का ग्राहक के साथ अच्छा बोलचाल का कौशल है तो उसे अच्छा मार्जिन मिल जाता है। विक्रेता के ड्यूटी का समय आठ घंटे का होता है और उसे ज्यादा से ज्यादा सिग्नल्सकवर करने पड़ते हंै। अधिकांश कुछ परिवार पहले से ही यह काम कर रहे होते हैं। सिर्फ न्यूज़्ा पेपर और मैगजीन का ही मूल्य निश्चित होता है बाकी सभी उत्पादों का निश्चित मूल्य नहीं होता है। लगभग सभी ट्रैफिक सिग्नल पर एक फूल विक्रेता जरूर होता है और वह बेचने वाला एक बच्चा होता है। किसी भी कार में महिला-पुरूष बैठे हैं तो वह उन्हें बेचने का भरसक प्रयास करता है। महिला को बगल में बैठे देख वह अपने माल को बेचने के लिए अपनी हर चाल अपनाता है।

शिकंजा कसने में प्रशासन नाकाम

चंडीगढ़, मोहाली व पंचकूला में जहां भी लाईटे लगी हो वहां ये लोग गाडिय़ों के इर्द-गिर्द मंडराने लग जाते हैं, और गाडिय़ों के शीशे पर हाथ मारते हुए कई बार कपड़े से गाड़ी के शीशे साफ करते हुए सामान खरीदने का आग्रह करने लगते हैं। यह नहीं कि वहां पुलिस नहीं होती बल्कि ट्रैफिक पुलिस के देख-रेख में ही यह धंधा चल रहा है, क्योंकि सबकुछ जानते हुए भी पुलिस मूकदर्शक बनी रहती है कई बार तो खुद वाहन चालक वहां खड़ी पुलिस पर ही सवाल दाग देते हैं कि ट्रैफिक लाईटों पर पुलिस जब कई बार वाहन चालकों को हिदायतें देते हैं। हां इतना जरूर है कि कुछ समय पहले चंडीगढ़ पुलिस ने जरूर इन्हें हटाने का चलाया था और कुछ दिनों के लिए ये लोग गायब रहे लेकिन फिर हर ट्रैफिक लाईटों पर ये कुकरमुत्तों की तरह उग आते हैं।

लाइटों पर सामान बेचते नजर आते हैं बच्चे व दिव्यांग

लोगों का तो अब यह भी मानना है कि ट्रैफिक लाईटों पर जो छोटे बच्चे व दिव्यांग इस प्रकार की वस्तुएं बेच रहे हैं उनके पीछे एक बड़ा गैंग है जो इन लोगों से यह धंधा कराता है। पुलिस को चाहिए कि ऐसे कथित गैंग पर ही हाथ पाया जाये और मजबूरी वश ऐसे धंधे में लगे छोटे बच्चों और दिव्यागों को इससे मुक्त करवाया जाये। हालांकि चंडीगढ़, पंचकूला व मोहाली प्रशासनों की ओर से कई बार होर्डिंग्स व बैनर तो जरूर लगाए गए और यह दावे भी किए गए कि शहरों से भिखारियों व ट्रैफिक लाईटों पर सामान बेचने वालों को रोका जाएगा। कई बार अभियान भी चलाए गए लेकिन ऐसे अभियानों की भी हवा निकलती ही नजर आई और आज ट्राईसिटि के तीनों शहरों में लगभग सभी लाईटों प्वांईटस् पर ऐसे लोगों की गिरफ्त में है और पुलिस चाहकर भी इन्हें रोकने में नाकामयाब साबित हो रही है।

यहां तक कि कई बार तो जब वाहन चालक इन सामान बेचने वालों या भिखारियों को डांटने का प्रयास करते हैं तो ये लोग लडऩे पर उतारू हो जाते हैं।खासकर नवविवाहिता को देखकर तो वह पास बैठे पुरूष को इशारा करते हुए अपना सामान बेचने में कामयाब हो जाता है । कई बार तो जब चालक पैसे देने का प्रयास कर रहा होता है तो लाईट ग्रीन हो जाती है और पीछे अन्य वाहनों के हार्न बजने शुरू हो जाते हैं। यहां तक कि कई बार तो दुर्घटना भी इन्हीं की वजह से होती है और जब वाहन चालकों की आपस में तूं-तूं , मैं-मैं हो जाती है तो ये लोग चुपके से मौके पर से खिसक जाते हैं। सरकार को इस पर रोक लगाने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।