आज जहां शिक्षित नवयुवक/ नवयुवतियां बेरोजगारी का शिकार बने बैठे हैं वहीं दूसरी तरफ सरकार सरकारी नौकरियों में कर्मचारियों की रिटायरमेंट तिथि में बढ़ोतरी करती जा रही है जिसके कारण बेरोजगारी की समस्या और भी गहराती जा रही है। यह चिंतन का विषय है कि नौकरी की आवश्यकता एक बेरोजग़ार को अधिक है या उस व्यक्ति को जो अपनी नौकरी की अवधि को पूरा कर चुका है?
बात समझने की है कि हर चीज़ की अपनी एक अलग जगह होती है ओर उसे समयनुसार किया गया हो तो वो अछि लगती है नहीं तो दोनों ही स्थितियों में हानिकारक नतीजे सामने आने का डर सा लगा रहता है। एक तरफ तो सरकारें ये भरोसा दिलाती हैं कि नवयुवकों के लिए सरकारी नौकरियों में वृद्धि होगी लेकिन वहीें दूसरी तरफ सरकारी कर्मचारियों के कार्यकाल में वृद्धि होती है तो फिर इन बेरोजग़ारों को नौकरी कैसे मिल पायेंगी। जब लोग रिटायर होंगे तभी तो नौकरी में रिक्त स्थान बनेंगे जिन्हें नए उमीदवारों द्वारा भरा जाएगा। बेरोजग़ारी से या खाली बैठने से व्यक्ति मानसिक रोग का शिकार बन बैठता है और नकारत्मकता सोच रखते हुए गलत निर्णय ले बैठता जिससे वह अपने आप को निकाल नही पाता और अपने जीवन को पतन की ओर धकेल देता है। हम समाचार पत्रों द्वारा ये जान पाते हैं कि कितने नवयुवकों ने गलत रास्ता चुन लिया और इस का सबसे बड़ा कारण है बेरोजगारी क्योंकि शिक्षित होने के बावजूद नवयुवकों को काम नहीं मिल पाता तो वे कमाने के आसान तरीके ढूंढऩा शुरू कर देते हंै और वे इंसानियत के दुश्मनों जैसे कुछ संगठनों के प्रलोभनों का शिकार हो जाते हैं। ऐसे युवक खुद अपने, परिवार और देश के दुश्मन बन जाते हैं।
नौकरी ढूंढते-ढूंढते कई बार नवयुवक/ नवयुवतियां गलत संगत में फंस जाते हैं। हमारे प्रधानमंत्री बताते हैं कि भारत के नवयुवकों की आबादी अन्य देशों के नवयुवकों से ज़्यादा है और हमारे नवयुवक ही नव भारत का निर्माण करेंगे। इस बात में दम है लेकिन यही नवयुवक अगर बेकार रहते हुए गलत रास्तों पर चलेंगे तो एक आदर्श भारत का निर्माण कैसे होगा? अगर वाकई देश के विकास के बारे में हम सब को सोचना है तो कुछ ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है जिससे नवयुवकों को गुमराह होने से बचा सकें और उनको कोई न कोई काम दिला कर काम में व्यस्त रखें। जब भारत में शिक्षित वर्ग को कोई ढंग की नौकरी नहीं मिल पाती तो पड़े लिखे नवयुवक नवयुवतियां विदेशों में नौकरियां ढूंढते हैं और वहां जा कर अपनी प्रतिभा का मूल्यांकन करते हैं। सिर्फ इतना कह देने से कि हम विदेश में नौकरी करने वाले नवयुवकों को अपने देश में वापस लाएंगे और उनके लिए भारत में ही अच्छे व्यवसायों का प्रबंध करेंगे, बातें भाषणों में तो अच्छी लगती हैं लेकिन वास्तविकता से दूर हैं।
जो नवयुवक विदेशों में जा कर नौकरियां कर रहे हैं वो इस बात से सन्तुष्ट हैं कि उनकी प्रतिभा का वहां सही तौर से मूल्यांकन किया जाता है, उन्हें ठीक समय पर नौकरी में तरक्की मिलती है, सबसे बड़ी बात उन्हें वहां आरक्षण की प्रताडऩा नहीं झेलनी पड़ती। यदि सरकार वाकई देश के शिक्षित युवा वर्ग को वापस बुलाना चाहती है तो उसे ये सब सुविधाएं युवा वर्ग को अपने देश में व्यावहारिकता में मुहैया करानी होंगी। सरकारी नौकरियों में रिटायरमेंट की अवधि बढ़ाने की बजाए योग्य एवं शिक्षित नवयुवकों को रोजगार के अवसर प्रदान करने होंगे।