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काली माता मंदिर, कालका का इतिहास

पंचकूल के कालका स्थति प्राचीन कालीमाता मंदिर में मां का शांत स्वरूप है और मंदिर में सच्चे मन से आने वाले भक्तों की देवी मां हर मनोकामना पूर्ण करती है। कालका मंदिर में माता पिंडी रूप में विराजमान है और भक्त पिंडी रूप में मां के दर्शन करते हैं। साल में आने वाले दो नवरात्र के दौरान मंदिर में मेला लगाया जाता है और देश के कोने- कोने से मां के भक्त बड़ी श्रद्धा के साथ महाकाली के दर्शनों के लिए पहुंचते हैं।

कालका स्थित शक्तिपीठ कालीमाता मंदिर का निर्माण पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान किया था। कहा जाता है कि पांडव अज्ञातवास के दौरान यहां रुके थे और राजा के यहां छुपे हुए थे। पांडव भीम गायों की देख-रेख करने का कार्य करते थे। उस समय राजा विराट के पास श्यामा नामक एक गाय थी।

शाम को जब गाय चारा चरकर वापस पहुंचती थी तो उसका दूध निकला हुआ होता था। कई दिनों तक ऐसा ही चलता रहा, जिसको देखकर राजा ने इस रहस्य का पता लगाने के लिए भीम को जिम्मेदारी सौंपी।

इसके बाद भीम ने दिनभर गाय का पीछा किया और शाम होने पर देखा कि गाय का दूध खुद ही एक पिंडी पर निकलने लगा। भीम हैरान हो गए।

जैसे ही भीम पिंडी के पास पहुंचे तो आकाशवाणी हुई कि इस स्थान पर स्वयं महाकाली विराजमान हैं और पांडव यहां महाकाली के मंदिर का निर्माण करें। इसके बाद पांडवों ने बड़े-बड़े पत्थरों के साथ मंदिर का निर्माण करके देवी मां की पूजा-अर्चना की।

पांडवों द्वारा बनाए गए मंदिर के अंदर का भवन आज भी देखने को मिलता है, क्योंकि मंदिर के पुराने स्वरूप में कोई बदलाव नहीं किया गया है। यहां युगों-युगों तक अनेक ऋषि मुनियों ने मंदिर में तपस्या की और उनके चिमटे व धूणे आज भी मंदिर में देखे जा सकते हैं।

मंदिर की दहलीज पर चरणों की पूज

2011 में मंदिर के कपाट की चोखाट पर एक छोटे पदचिह्न का निशान छपा हुआ मिला।

उस समय परवाणू, पिंजौर, डेराबस्सी, पंचकूलाव चंडीगढ़ आदि शहरों कई दिनों तक रोजाना हजारों की संख्या में भक्त मंदिर में पहुंचते रहे और मंदिर की दहलीज पर चरणों की पूजा अर्चना करते रहे, जोकि आज भी जारी है।

भक्तों की श्रद्धा को देखते हुए माता मनसा देवी श्राइन बोर्ड ने पदचिह्नों को फ्रेम करके कवर करवा दिया। आज भी भक्त माता के पदचिह्नों की पूजा करके ही आगे बढ़ते हैं।

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