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महंगाई ने तोड़ी कमर, त्राहि-त्राहि कर रही जनता

महंगाई-महंगाई चिल्लाने वाली भारतीय जनता पार्टी आज खुद सत्ता में है लेकिन महंगाई कम होने की बजाय चरम पर पहुंच गई है। आम जन महंगाई से त्राहि-त्राहि कर रहा है। गरीब आदमी का तो जीना दूभर हो चला है लेकिन इस सबसे इतर भाजपा की मोदी सरकार ने बेतहाशा बढ़ती महंगाई पर लगाम लगाने के लिए अभी तक कोई ठोस योजना नहीं बनाई है। इससे पूर्व कांग्रेस शासन में कोई दिन ऐसा नहीं गया जब महंगाई पर भाजपा ने सरकार को न घेरा हो।
उपरोक्त विचार जिला कांग्रेस कमेटी पंचकूला के पूर्व उपाध्यक्ष तरसेम गर्ग ने एक प्रेस नोट के माध्यम से व्यक्त किए। गर्ग ने कहा कि कांग्रेस काल में महंगाई को लेकर आए दिन धरने प्रदर्शन कर सरकार को घेरने वाली भारतीय जनता पार्टी व उसके नेता कहां हैं? हम उनसे पूछना चाहते हैं कि चुनाव में महंगाई को मुद्दा बनाकर सत्ता हथियाने वाले कहां हैं। अब तो केंद्र में उनकी सरकार है लेकिन महंगाई अब घटने की बजाय बेतहाशा बढ़ रही है। आम उपभोग की वस्तुओं के दाम शीर्ष पर पहुंच गए हैं, देश की जनता त्राहि-त्राहि कर रही है, गरीब व मध्यम वर्ग के लोगों का जीना दूभर हो गया है लेकिन भाजपा की मोदी सरकार इस मुद्दे पर पूरी तरह से चुप्पी साधे है। जनता से महंगाई कम करने के दावे करने वाले भाजपा के शीर्ष नेता अब कहां गुम हो गए हैं। बिजली की बढ़ती दरों को लेकर घरेलू और कॅमर्शियल उपभोक्ता दोनों परेशान हैं बढ़ती बिजली दरों को लेकर उपभोक्ताओं में सरकार के प्रति रोष है। गरीब आदमी जो केवल दाल-रोटी खाकर अपना व अपने परिवार की भूख को शांत करता था आज वही दाल बाजार में 150 से 200 रुपए प्रति किलोग्राम हो गई है। सरसों का तेल 90 रुपए लीटर से बढ़कर 125 रुपए प्रति लीटर हो गया है। स्थिति यह हो चली है कि गरीब व मध्यम वर्ग के लोगों को दो वक्त की रोटी जुटा पाना मुहाल हो चला है। गरीब आदमी तो दाल सब्जी के केवल सपने ही देख सकता है। आम उपभोक्ताओं का कहना है कि महंगाई घटने की बजाए बढ़ गई है जिससे उनका जीना मुहाल हो गया है लेकिन सरकार को इसकी कोई परवाह नहीं है। डीज़्ाल, पेट्रोल के दाम स्थिर नहीं हैं। भारत के लिए क्रूड ऑयल यानी कच्चा तेल 2008 के बाद सबसे सस्ता हो गया है। इसके बावजूद आम आदमी को पेट्रोल-डीज़्ाल की कीमतों में बड़ी गिरावट के तौर पर कोई राहत नहीं मिल रही है। पिछले तीन से चार महीने में पेट्रोल 9 से 10 रुपए प्रति लीटर महंगा हो गई है।
मोदी सरकार के राज में भी महंगाई आम आदमी की कमर तोड़ रही है। विपक्ष में रहते भाजपा मनमोहन सरकार को महंगाई के लिए कोसा करती थी। और इस पर काबू पाने के बड़ी-बड़ी डींगें हांका करती थी। मनमोहन सिंह सरकार के 10 साल के शासन को सर्वनाश का दशक बताते हुए भाजपा ने आम आदमी के लिए सौ दिन में अच्छे दिन लाने का वादा किया था मोदी सरकार के आते ही महंगाई पर अविलंब नियंत्रण पा लिया जाएगा। और कुप्रबंध के कारण देश को महंगाई की मार झेलनी पड़ रही है। दालें जो आम आदमी के बजट में होती थी उनके भावों में बेतहाशा वृद्धि हो रही है। मगर सरकार के आंकड़े अक्टूबरतक कह रहे हैं कि थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित थोक मुद्रा स्फीति शून्य से नीचे चली गई है। यानी देश में थोक वस्तुओं के दामों में जबर्दस्त गिरावट आई है। बहरहाल, आम आदमी को इन सब बातों से कोई सरोकार नहीं है। बाजार में अगर दाल, सब्जी, घी-दूध और आटा चावल सस्ता है तो समझो अच्छे दिन हैं और अगर ये चीजें महंगी हैं तो सरकार की स्वच्छता अभियान एवं भ्रष्टाचार मुक्त सुशासन भी उसके किसी काम की नहीं। गर्ग का कहना है कि अब बैंकों को लेकर सवाल खड़े हो रहे है। बैंकों ने अब फरमान कर दिया है कि अगर ग्राहकों के खाते में नयूनतम बैलंस नहीं होगा उसको पेनाल्टी लगेगी।
तरसेम गर्ग ने कहा कि जनता महंगाई से त्राहि त्राहि कर रही है, मोदी सरकार चुनाव में कांग्रेस को कोसती थी। और कहती थी आप हमें एक बार वोट दो सरकार बनते ही महगाई पर नियंत्रण कर लेंगे। मगर हुआ इसके कदम उल्ट। महगाई पर सरकार का संज्ञान लेना तो दूर सरकार ने इस विषय में सोचना ही बंद कर दिया है।
उधर सरकार की कैशलेस स्कीम फेल होती नजर आ रही है इसकी वजह इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी। कारोबारियों को मशीन और अन्य चीजें उपलब्ध न होना। सरकार हड़बड़ी में सब कुछ जल्दी-जल्दी करना सोचती है मगर लोगो को सहूलियत नहीं दे पा रही।
उधर पूर्व वित्तमंत्री पी चिंदबरम ने नोटबंदी को जीडीपी के ताज़ा आंकड़ों के सहारे सही साबित करने के सरकार के दावों पर सवाल उठाया है। कांग्रेस नेता के अनुसार, जीडीपी आकलन के पैमाने को आंकड़ों की बाजीगिरी से बदल सरकार यह दिखाने की कोशिश कर रही कि नोटबंदी का विकास दर पर कोई असर नहीं हुआ है। मगर सरकार की कोशिशों की असलियत की पोल वित्तीय वर्ष की आखरी तिमाही के आंकड़े आते ही खुल जाएगी। उन्होंने कहा कि सरकार भले अर्थशास्त्रियों और बुद्धिजीवीयों का मज़ाक उड़ा रही हो, मगर जब चौथी तिमाही के आंकड़े आएंगे तो साफ हो जाएगा कि नोटबंदी ने अर्थव्यवस्था पर कितना गंभीर असर पड़ा है।